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धन त्रयोदशी-दीवाली-लाभ पञ्चमी पूजन – महा-लक्ष्मी पूजन- चोपड़ा पूजन मुहूर्त तथा विधि : (२०१७)

धन त्रयोदशी / धन-तेरश तथा दीपावली के दिन लक्ष्मी-सरस्वती पूजन-विधि शुभ समय अर्थात् शुभ मुहूर्त्त पर करना ज्यादा शुभ फल दायक होत है | पूजा को प्रातः समय या सांयकाल अथवा अर्द्धरात्रि को अपने शहर व स्थान के मुहुर्त्त के अनुसार करना चाहिए | इस वर्ष 17 अक्तूबर, 2017 को मंगलवार के दिन धन त्रयोदशी / धन-तेरश मनाई जाएगी तथा 19 अक्तूबर, 2014 को गुरुवार के दिन दीपावली/ दिवाली मनाई जाएगी|  महा-लक्ष्मी के पूजन में प्रदोष काल, स्थिर लग्न व शुभ चौघाडिया तथा मुहूर्त विशेष का महत्व होता  है |

सामान्य भक्तो की जानकारी के लिए धन त्रयोदशी / धन-तेरश  तथा दीपावली पूजन के लिए निन्मोक्त शुभ मंगलकारी मुहूर्त दिये गये है इन मुहूर्त में पूजन-अर्चन करने से माता महालक्ष्मी की असीम कृपा प्राप्त होती है और जीवन धन-धन्य से पूर्ण सुख-संपत्ति के साथ ऐश्वर्यशाली होता है।

धन त्रयोदशी / धन-तेरश अवं दीपावली पूजन का विशेष मुहूर्त:
धन त्रयोदशी / धन-तेरश मुहूर्त:

तारीख : १७/१०/२०१, मंगलवार

(विक्रम संवत २०७, शालिवाहन शक १९३, दक्षिण अयन, शरद  ॠतु, श्विन मास, कृष्ण पक्ष, त्रयोदशी, मंगलवार)

  1. दिन का पूजन मुहूर्त: (धन त्रयोदशी / धन-तेरश मुहूर्त:)

  1. सुबह 10:57:00 AM से 12:24:00 AM बजे तक लाभ चौघडिया

  2. दोपहर 12:24:00 AM से 13:51:00 AM बजे तक अमृत चौघडिया

  3. अपराह्न 03:18:00 PM  से 04:46:00 PM बजे तक शुभ चौघडिया

  4. शाम को 07:46:00 PM से 09:19:00 PM बजे तक लाभ चौघडिया

 

  1. रात्रि (रात) का पूजन मुहूर्त: (धन त्रयोदशी / धन-तेरश मुहूर्त:)

  1. रात्रि (रात) में 10:51:00 PM से 12:24:00 AM बजे तक शुभ चौघडिया

  2. रात्रि (रात) में 12:24:00 AM से 1:57:00 AM बजे तक अमृत चौघडिया

  • धन त्रयोदशी / धन-तेरश का विशेष मुहूर्त:

  • प्रदोष (सायं संध्या) में विशेष मुहूर्त : 05:25:00 PM से 07:01:00 PM बजे तक |

  • स्थिर लग्न वृश्चिक (सुबह में )
    सुबह 08:51:00 am से 11:05:00 am बजे तक।

  • स्थिर लग्न वृषभ (सायं काल में )
    रात्रि 07:51:00 pm से 09:50:00 pm बजे तक

  • स्थिर लग्न सिंह (रात्रि में )
    रात्रि 02:17:00 am से 04:26:00 am बजे तक।

 

  • दीपावली पूजन का मुहूर्त (2017):  तारीख : 19/10/2017, गुरुवार

(विक्रम संवत 2073, शालिवाहन शक 1939, दक्षिण अयन, शरद  ॠतु, श्विन मास, कृष्ण पक्ष, अमावास/दिवाली, गुरुवार)

  1. दिन का मुहूर्त (दीपावली पूजन का मुहूर्त) :

  1. सुबह 06:36:00 AM से 08:03:00 AM बजे तक शुभ चौघडिया

  2. दोपहर 12:24:00 PM से 01:51:00 PM बजे तक लाभ चौघडिया

  3. अपराह्न 01:51:00 AM से 03:18:00 AM बजे तक अमृत चौघडिया

  4. अपराह्न 04:44:00 PM  से 06:11:00 PM बजे तक शुभ चौघडिया

 

  1. रात/रात्री का मुहूर्त(दीपावली पूजन का मुहूर्त) :

  • रात्रि का समय (रात) : शाम को 06:11:00 pm से 07:44:00 pm बजे तक अमृत चौघडिया

  • रात्रि का समय (रात) : मध्य रात्रि में 00:24:00 am से 01:57:00 am बजे तक लाभ चौघडिया

  • रात्रि का समय (रात) : ब्रह्म मुहूर्त में 03:30:00 am से 05:04:00 am बजे तक शुभ चौघडिया

  • रात्रि का समय (रात) : ब्रह्म मुहूर्त में 05:04:00 am से 06:37:00 am बजे तक अमृतचौघडिया

 

  • दीपावली (दीवाली) पूजन का विशेष मुहूर्त: तारीख : 19/10/2017, गुरुवार

 

  • प्रदोष (सायं संध्या) में विशेष मुहूर्त : 05:23:00 pm से 06:59:00 pm बजे तक |

  • स्थिर लग्न वृश्चिक (सुबह में )
    सुबह 08:43:00 am से 10:58:00 am बजे तक।

  • स्थिर लग्न वृषभ (सायं काल में )
    रात्रि 07:43:00 pm से 09:42:00 pm बजे तक

  • स्थिर लग्न सिंह (रात्रि में )
    रात्रि 02:09:00 am से 04:18:00 am बजे तक।

                   हिन्दू धर्म-शास्त्र के अनुसार धन-दौलत की अधिष्ठात्री महादेवी महालक्ष्मी का पूजन-अर्चन प्रदोष काल (सायं-संध्या समय) में करने से विशेष फल प्राप्त होता है । धन त्रयोदशी/ धन तेरश  तथा दिवाली/दीपावली  के दिन महालक्ष्मी पूजन-विधि या उपासना का यह उत्तम मुहूर्त माना गया है। त्रयोदशी की लक्ष्मी पूजा धन-दौलत देनेवाली, तथा दीवाली की लक्ष्मी पूजा सब धन-समृद्धि की देने वाली कही गई है | माता महा-लक्ष्मी को समस्त संसार व चराचर को धन-समृद्धि देने वाली देवी माना गया है। अतः धन-लक्ष्मी की इच्छावाले यजमान को सायं संध्या काल में दीपक/दीप/दीया जलाकर महा-लक्ष्मी का पूजन-अर्चन शास्त्रोक्त विधि-विधान से करना चाहिए ।
               महानिशिथ काल (मध्य रात्रि का समय) में लक्ष्मी माता का मंत्र का जाप करने से विशेष लक्ष्मी तथा धन का लाभ प्राप्त होता है अर्थात् अधिक आर्थिक लाभ होता है। यह समय पूजन मुहूर्त का समय मध्य रात्रि 12.00 am से 12.48 am तक (रेलवे टाइम अनुसार 00.00 से 00.48) रहेगा।

महालक्ष्मी के विविध मंत्र:

 

  1. महा-लक्ष्मी का नाम मंत्र :

ह्री महालक्ष्म्यै नमः|

अथवा

  1. महा-लक्ष्मी का गायत्री मंत्र :

ह्री महालक्ष्मी च विद्महे विष्णु पत्नी च धीमहि |

तन्नो लक्ष्मी: प्रचोदयात् ||

 

अथवा

  1. महा-लक्ष्मी का पुराणोक्त मंत्र:

समुद्र मथनोज्जाता जगदानन्द कारिका |

हरि-प्रिया च मांगल्या तां च श्रियं ब्रुवन्तु नः ||

अथवा

  1. महा-लक्ष्मी का वेदोक्त मंत्र:

ॐ श्रीश्चते लक्ष्मीश्च पत्न्या वहो रात्रे पार्श्वे नक्षत्राणि रूपमश्विनौभ्यात्तम् |

इष्णं निखाणा मुम्मऽइखाण सर्भलोकं मऽइखाण || (-यजुर्वेद 22.22)

अथवा

  1. महा-लक्ष्मी का वेदोक्त मंत्र:

ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम्‌ ।
चंद्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥

(- ॠग्वेद)
 

  1. तंत्रोक्त मंत्र:

ऊं श्रीं ह्रीं कमले कमलालये। प्रसीद् प्रसीद् श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नम:।

 

लक्ष्मी मंत्रों का जाप स्फटिक की माला या कमल बिज की माला से करना उत्तम फलदायी रहता है। उसमे भी कमलगट्टे की माला श्रेष्ठ मानी गई है।

 

  • महा-लक्ष्मी का पूजन उत्तराभिमुख या पूर्वाभिमुख होकर करना लक्ष्मी-दायक है  :

          महा पर्व दिवाली पर माता ‘’महा-लक्ष्मी’’ के साथ लोक परंपरा अनुसार सरस्वती पूजन अर्थात ‘’चोपड़ा पूजन’’ का भी विशेष महत्व है। माता महा-लक्ष्मी का पूजन उत्तराभिमुख या पूर्वाभिमुख (उत्तर दिशा में देखते हुए या पूर्वदिशा में देखते हुए ) होकर करना चाहिए। माता महा-लक्ष्मी का पूजन के साथ श्रीमहाविष्णु, शंख, कुबेर का भी पूजन-अर्चन कर सकते है

यादरखे की दक्षिणाभिमुख अर्थात् दक्षिण दिशा की ओर मुख करके महा-लक्ष्मी का पूजन-अर्चन कभी भी नहीं करे । 
 

        ब्रह्मपुराण के अनुसार कार्तिक अमावस्या की इस अंधेरी रात्रि को अर्थात् अर्धरात्रि में महालक्ष्मी स्वयं पृथ्वी लोक में आती हैं और प्रत्येक सद्गृहस्थ के घर में विचरण करती हैं। जो घर दीपमाला(दीया की हार माला)से युक्त हो,  घर का आंगन तथा घर हर प्रकार से स्वच्छ, पवित्र और सुंदर तरीक़े से सुसज्जित, सुगंध धुप-अगर्बत्तिसे सुगन्धित हो, और दीया का, लाइट का प्रकाशयुक्त होता है वहां महालक्ष्मी माता अपने अंश रूप में सदा ही वास करती हैं। इसलिए इस दिन घर के अन्दर तथा बाहर को ख़ूब पवित्र, सुगन्धित, साफ-सुथरा करके रंगोली से अच्छी तरह सजाया-संवारना चाहिए । दीपावली का त्यौहार मनाने से माता महा-लक्ष्मीजी का आशीर्वाद प्राप्त होता है तथा उसघर पर सदाही लक्ष्मी माता की कृपा दृष्टी रहती है ।

 

  • दीपावली में दीया सदाही गाय का घी से प्रज्ज्वलित करें : 

         महा-लक्ष्मी पूजन के समय गाय का घी का ही दीपक (दीया) प्रज्ज्वलित करना चाहिए। माता महा-लक्ष्मी के पूजन पहले दीपक/दीप/दीया का पूजन करें। उसके बाद इन दीया को घर के दरवाज़ा के दोनों तरफ, घर के आंगन में दोनों तरफ, तथा घर के मंदिर में दोनों तरफ एक-एक दीपक/दीया करना चाहिए। श्रद्घा व सामर्थ्य अनुसार ३, ५, ११, २१, ५१, १०८, १००८ दीपक-दीया  लगाए जा सकते हैं।

 

देव प्रबोधिनी एकादशी तथा देव दीवाली (देव दिवाळी) २०१७:

            दिवाली के ग्यारह दिन के बाद देव प्रबोधिनी एकादशी अर्थात् देवउठनी अग्यारश आती है। जो की इस वर्ष ३१/१०/२०१७ मङ्गलवार को होगी|  हिन्दू धर्म शास्त्र की मान्यता अनुसार उस दिन भगवान श्री विष्णु निद्रा से जागते हैं । इ दिन (देव प्रबोधिनी एकादशी ) से पाचवे दिन दीवाली होती है जिसको ‘छोटि दिवालि’ भी कहते है| इस दीनो ही दिन भी दीवाली जैसाही महा-विष्णु के साथ लक्ष्मी माता की पूजा-अर्चना करना चाहिए |

 

  • दीपावली में महा-लक्ष्मी पूजन सामग्री ( Pooja Materials for Maha-Lakshmi Worship) :

           लक्ष्मी पूजन में अबिल, गुलाल, कुमकुम, सिंदूर, अष्टगंध, तज, इलाइची, लौंग, कमल गट्टा, इलायची, पान, सुपारी, धूप, कपूर, अगरबत्ती, कर्पुर, गुड़, सुखा धनिया, अक्षत (चावल), फल-फूल, जौं, गेहुँ, दूर्वा, कमल के फूल, चंदन, सिंदूर, दीया, गाय का घी, पंचामृत, गंगाजल, माता की चुनरीस-वस्त्र, नारियल, जनेऊ/यज्ञोपवित, लाल वस्त्र, देवीके वस्त्र, इत्र/परफ्यूम, पान का पत्ता, फुल, फुल की माला, चौकी, कलश, खील-बताशे, कमल गट्टे की माला, शंख, कुबेर यंत्र, श्री यंत्र, लक्ष्मी व गणेश जी का मूर्ति या प्रतिमा/फोटो, बैठने का आसन, थाली, आरती की थाली, सोने या चांदी या रुपयेका सिक्का, मिठाई, प्रसाद, इत्यादि वस्तुओं को पूजन समय रखना चाहिए |

महा-लक्ष्मी पूजन पद्धति/रीत:

      महा लक्षी माता की कृपा चाहने वाले को महालक्ष्मी पूजन कैसे हो इसके लिए हिन्दू धर्म में कमसे कम पंचोपचार, षोडशोपचार, त्रिम्सोप्चार या राजोपचार, या शक्ति के अनुसर महा लक्ष्मी की पूजा अर्चना करना चाहिए |

  1. सबसे पहले गणपति की पूजा करे

  2. महालक्ष्मी माता की पूजा करे,

  3. महा-विष्णु की पूजा करे

  4. कुबेरकी पूजा करे,

  5. शंख की पूजा करे

  6. तिजोरी की पूजा करे,

  7. गल्ला की पूजा करे

  8. तुला/त्रजवा/वजन कटा की पूजा करे

  9. पेन या दवात या कलम की पूजा करे

  10. बही-खाता, दीपावली पूजन की पूजा करे

  11. हिसाब का चोपड़ा, (अकाउंट बुक) की पूजा करे

  12.  अपने व्यापारिक ऑफिस या प्रतिष्ठान के मुख्य द्वार या घर के प्रवेश द्वार के ऊपर गायके घी में घुले हुए सिंदूर से- ''स्वास्तिक का चिन्ह'', ''शुभ-लाभ'', तथा ''श्री गणेशाय नमः'' लिखें।

 

          देवी की प्रसन्नता के लिए वैदिक विद्वान पंडित के द्वारा पूजा अर्चना के साथ ऋग्वेद के श्रीसूक्तद्वारा अभीषेक, मंत्र का पाठ आदि विधान करना चाहिए ।

       विद्वन् पण्डित के अभाव मे  अगरबत्ती, गाय के घी का दीया, कमल का पुष्प, लाल कनेर का फूल, कमलगट्टा, धूप, दीप, नैवेद्य (प्रसाद), फल, खील-बताशे, पकवान, सुपारी, पान के पत्ते जो पूजा सामग्री प्राप्त हो वह लक्ष्मी माता को श्रद्धा भक्ति से समर्पित करना चाहिये। पूजा के अंतमे माता महा-लक्ष्मी की भाव-भक्ति से आरती तथा प्रदक्षिणा, क्षमा-प्रार्थना करनी चाहिए |

महा-लक्ष्मी पूजन-अर्चन विधि तथा कुछ विशेष नियम

(Rituals To Worship Goddess Maha-Lakshmi):

            लक्ष्मी पूजन घर के मंदिर के स्थान अर्थात् पूजा स्थल/दुकान या तिजोरी रखने वाले स्थान या उचित पवित्र रूम/जगह में  करना चाहिए, व्यापारियों को अपनी तिजोरी के स्थान पर पूजन करना चाहिए | पूजा का स्थान को गोमूत्र या गंगा जल से पवित्र करके शुद्ध कर लेना चाहिए, घरके दरवाजा के आगे रंगोली को बनाना चाहिए, देवी लक्ष्मी को दीया, सुगंदी धूप, कमल का फूल, चन्दन तथा रंगोली अत्यंत प्रिय है | महा-लक्ष्मी पूजन समय स्नानादि से पवित्र होकर नया या स्वच्छ वस्त्रों को धारण करके भाव भक्ति से युक्त होकर महा लक्ष्मी का पूजन का आरंभ करना चाहिए | पूजन में पूर्व की तरफ मुँह करके या उत्तर की तरफ मुँह करके बैठना चाहिए। महालक्ष्मी पूजन लाल रंग का आसन अथवा कुशा के आसन पर बैठकर करना चाहिए। पूजन सामग्री में जो वस्तु प्राप्त न हो उसके लिए उस वस्तु की जगह पर चावल/अक्षत अर्पण कर सकते है । गणेश पूजन में गणेश की मूर्ति या गणपति का फोटो या सिर्फ ध्यान करके भी गणपति का पूजन करना चाहिए | पूजन सामग्री को व्यवस्थित रूप से (पूजन शुरू करने के पूर्व) पूजा स्थल पर रख लें, जिससे पूजन में समय का व्यय न हो। पूजन में पूर्व की तरफ मुँह करके या उत्तर की तरफ मुँह करके बैठना चाहिए। महालक्ष्मी पूजन लाल रंग का आसन अथवा कुशा के बने आसन पर बैठकर करना चाहिए।

 

महा-लक्ष्मी की पूजा के अंतमे माता महा-लक्ष्मी की आरती:


(कपूर एवं गाय के घी का दीपक जलाकर महालक्ष्मी की आरती करें)

जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता ।
तुमको निसिदिन सेवत, हर-विष्णु विधाता ॥ॐ जय...॥
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग माता ।
सूर्य-चंद्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता ॥ॐ जय...॥
दुर्गारूप निरंजनि, सुख-संपत्ति दाता ।
जो कोई तुमको ध्याता, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता ॥ॐ जय...॥
तुम पाताल निवासिनि तुम ही शुभदाता ।
कर्मप्रभाव प्रकाशिनी भवनिधि की त्राता ॥ॐ जय...॥
जिस घर तुम रहती तहा, सब सद्गुण आता ।
सब संभव हो जाता, मन नहिं घबराता ॥ॐ जय...॥
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न हो पाता ।
खान-पान का वैभव, सब तुमसे आता ॥ॐ जय...॥
शुभ-गुण मंदिर सुंदर, क्षिरोदधि जाता ।
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहिं पाता ॥ॐ जय...॥

महालक्ष्मी की आरती, जो कोई नर गाता ।
उर आनंद समाता, पाप उतर जाता ॥ॐ जय...॥
आरती करके शीतलीकरण हेतु जल छोड़ें।
(स्वयं व परिवार के सदस्य आरती लेकर पानी से हाथ धो लें।) 

बाद मे महा-लक्ष्मी माता की एक ही प्रदक्षिणा करे|

क्षमा प्रार्थना :

  1. आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्‌ ॥
    पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वरि ॥
    मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि ।
    यत्पूजितं मया देवि परिपूर्ण तदस्तु मे ॥१॥

  2. त्वमेव माता च पिता त्वमेव
    त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।
    त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव
    त्वमेव सर्वम्‌ मम देवदेव ॥

    हाथमे पानी लेकर पूजन का अर्पण संकल्प  करे :
    हाथ में जल लेकर निम्न अर्पण संकल्प बोलें :-
    'ॐ अनेन यथाशक्ति पूजन-अर्चनेन श्री माता महालक्ष्मीः प्रियेतान्नमम॥'
    (जल छोड़ दें, प्रणाम करें)

    हाथ में चावल लेकर माता महा-लक्ष्मी का विसर्जन :
    (नित्य पूजा की मूर्ति या प्रतिमा को छोड़कर अन्य सभी) प्रतिष्ठित देवताओं को चावल छोडदे

  3.  विसर्जन का मंत्र बोले:-
    यान्तु देवगणाः सर्वे, पूजामादाय मामकीम्‌ ।
    इष्टकामसमृद्धयर्थं, पुनरागमनाय च ॥

 

।। लक्ष्मी चालीसा ।।

 

मातु लक्ष्मी करि कृपा करो हृदय में वास। मनोकामना सिद्ध कर पुरवहु मेरी आस॥

सिंधु सुता विष्णुप्रिये नत शिर बारंबार। ऋद्धि सिद्धि मंगलप्रदे नत शिर बारंबार॥ टेक॥

सोरठा

ही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करूं। सब विधि करौ सुवास, जय जननि जगदंबिका॥

 

॥ चौपाई ॥

 

सिन्धु सुता मैं सुमिरौं तोही। ज्ञान बुद्धि विद्या दो मोहि॥

तुम समान नहिं कोई उपकारी। सब विधि पुरबहु आस हमारी॥

जै जै जगत जननि जगदम्बा। सबके तुमही हो स्वलम्बा॥

तुम ही हो घट घट के वासी। विनती यही हमारी खासी॥

जग जननी जय सिन्धु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी॥

विनवौं नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी।

केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी॥

कृपा दृष्टि चितवो मम ओरी। जगत जननि विनती सुन मोरी॥

ज्ञान बुद्धि जय सुख की दाता। संकट हरो हमारी माता॥

क्षीर सिंधु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिंधु में पायो॥

चौदह रत्न में तुम सुखरासी। सेवा कियो प्रभुहिं बनि दासी॥

जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा। रूप बदल तहं सेवा कीन्हा॥

स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा॥

तब तुम प्रकट जनकपुर माहीं। सेवा कियो हृदय पुलकाहीं॥

अपनायो तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी॥

तुम सब प्रबल शक्ति नहिं आनी। कहं तक महिमा कहौं बखानी॥

मन क्रम वचन करै सेवकाई। मन- इच्छित वांछित फल पाई॥

तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भांति मन लाई॥

और हाल मैं कहौं बुझाई। जो यह पाठ करे मन लाई॥

ताको कोई कष्ट न होई। मन इच्छित फल पावै फल सोई॥

त्राहि- त्राहि जय दुःख निवारिणी। त्रिविध ताप भव बंधन हारिणि॥

जो यह चालीसा पढ़े और पढ़ावे। इसे ध्यान लगाकर सुने सुनावै॥

ताको कोई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै।

पुत्र हीन और सम्पत्ति हीना। अन्धा बधिर कोढ़ी अति दीना॥

विप्र बोलाय कै पाठ करावै। शंका दिल में कभी न लावै॥

पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करैं गौरीसा॥

सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै। कमी नहीं काहू की आवै॥

बारह मास करै जो पूजा। तेहि सम धन्य और नहिं दूजा॥

प्रतिदिन पाठ करै मन माहीं। उन सम कोई जग में नाहिं॥

बहु विधि क्या मैं करौं बड़ाई। लेय परीक्षा ध्यान लगाई॥

करि विश्वास करैं व्रत नेमा। होय सिद्ध उपजै उर प्रेमा॥

जय जय जय लक्ष्मी महारानी। सब में व्यापित जो गुण खानी॥

तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं। तुम सम कोउ दयाल कहूं नाहीं॥

मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। संकट काटि भक्ति मोहि दीजे॥

भूल चूक करी क्षमा हमारी। दर्शन दीजै दशा निहारी॥

बिन दरशन व्याकुल अधिकारी। तुमहिं अक्षत दुःख सहते भारी॥

नहिं मोहिं ज्ञान बुद्धि है तन में। सब जानत हो अपने मन में॥

रूप चतुर्भुज करके धारण। कष्ट मोर अब करहु निवारण॥

कहि प्रकार मैं करौं बड़ाई। ज्ञान बुद्धि मोहिं नहिं अधिकाई॥

रामदास अब कहाई पुकारी। करो दूर तुम विपति हमारी॥

दोहा

 

त्राहि त्राहि दुःख हारिणी हरो बेगि सब त्रास। जयति जयति जय लक्ष्मी करो शत्रुन का नाश॥

रामदास धरि ध्यान नित विनय करत कर जोर। मातु लक्ष्मी दास पर करहु दया की कोर॥

।। इति लक्ष्मी चालीसा संपूर्णम।।

 

 

 

 

॥वैभव प्रदाता श्री सूक्त॥

 

हिरण्यवर्णामितिपञ्चदशर्चस्य सूक्तस्य आनन्दकर्दमचिक्कीतेन्दिरासुता ऋषयःश्रिर्देवता आद्यास्तिस्रो अनुष्टुभः

चतुर्थी बृहती पञ्चमीषष्ठयौ त्रिष्टुभौ ततो अष्टावनुष्टुभः अन्त्या प्रस्तारपन्क्तिः जपे विनियोगः     

    हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्र​जाम्

चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो आवह ॥१॥

तां आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्

यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ॥२॥

अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रबोधिनीम्

श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम् ॥३॥

कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्

पद्मे स्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियम् ॥४॥

चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तिम् श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम्

तां पद्मिनीमीं शरणमहं प्रपद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ॥५॥

आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः

तस्य फलानि तपसानुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः ॥६॥

उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह

प्रादुर्भूतोऽसुराष्ट्रेस्मिन् कीर्तिम्मृद्धिं ददातु मे ॥७॥

क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम्

अभूतिमसमृद्धिं सर्वां निर्णुदमे गृहात् ॥८॥

गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम्

ईश्वरींग् सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम् ॥९॥

मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि

पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ॥१०॥

कर्दमेन प्रजाभूता सम्भव कर्दम

श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ॥११॥

आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस गृहे

निचदेवीम् मातरं श्रियं वासय कुले ॥१२॥

आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम्

चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो मऽआवह ॥१३॥

आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम्

सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो मऽआवह ॥१४॥

तां मऽआवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्

यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पूरुषानहम् ॥१५॥

यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम्

सूक्तं पञ्चदशर्चं श्रीकामः सततं जपेत् ॥१६॥

 

फल श्रुति:

पद्मानने पद्म ऊरु पद्माक्षि पद्मासम्भवे

न्मे भजसि पद्माक्षी येन सौख्यं लभाम्यहम् ॥१७॥

अश्वदायै गोदायै धनदायै महाधने

धनं मे जुषताम् देवी सर्वकामांश्च देहि मे ॥१८॥

पद्मानने पद्मविपद्मपत्रे पद्मप्रिये पद्मदलोयताक्षि

विश्वप्रिये विश्वमनोनुकूले त्वत्पादपद्मम् मयि संनिधस्व ॥१९॥

पुत्रपौत्र धनं धान्यं हस्त्यश्वादिगवे रथम्

प्रजानां भवसि माताऽआयुष्मन्तं करोतुमे २०

धनमग्निर्धनं वायुर्धनं सूर्यो धनं वसुः

धनमिन्द्रो बृहस्पतिर्वरुणं धनमश्विनौ ॥२

वैनतेय सोमं पिब सोमं पिबतु वृत्रहा

सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु सोमिनः॥२

क्रोधो मात्सर्यम् लोभो नाशुभा मतिः

भवन्ति कृतपुण्यानां भक्तानां श्रीसूक्तं जपेत् ॥२

सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरां शुकगन्धमाल्यशोभे

भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवन भूतिकरिप्रसीद मह्यम् २४

विष्णु पत्नीं क्षमाम्  देवीं माधवीं माधवप्रियां

लक्ष्मी प्रिय शाखीं देवीं नमाम्य च्युत वल्लभाम्२५

महालक्ष्मी विद्महे विष्णुपत्नीं धीमहि

तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् २६

श्रीवर्चस्यमायुष्यमारोग्यमाविधात् च्छोभमानं हीयते

धान्यं धनं पशुं बहुपुत्रलाभं शतसंवत्सरं दीर्घमायुः २७

 

॥ य एवं वेदइत्युपनिसत्

शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥३७॥

 

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